Comments on this Poem
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Thank you, Gupta ji. I am glad you liked it.
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आदित्य जी, धन्यवाद। खास तौर पर आपकी समीक्षा सटीक और सराहनीय है।
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Worth appreciable poem, sir.
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एक सशक्त रचना। मित्रता कभी -कभीथोड़ी सी नादानी, भ्रम, या मस्तिष्क के क्षणिक अविवेकी पन से उत्पन्न विवाद से पूरी तरह भले ही न टूटे पर एउसमें एक hair-crack अवश्य आ जाता है जो बाद में कई गई कितनी भी शल्य क्रियाओं से नहीं जुड़ता और यह जख्म कभी कभी persistantly स्थायी रूप से inbilt हो जाता है। शायद यही तथ्य कवि के मन मे रहा होगा, तभी तो उसने अगली पंक्तियों में यह कहने का प्रयास किया है कि यदि आप मित्र से सच्चा प्रेम करते हो, निष्ठा रखते हो तो अपनी ओर से हुई नादानी को त्रुटि को, तुरंत सुधार लो(अविलंब क्षमा याचना कर लो).क्योंकि मित्र तो गैस से भरे हुए गुब्बारे की तरह होते हैं,यदि आप इसकी डोर को (जिससे यह बंधा हुआ है)कस कर नहीं पकड़ेंगे तो कोई भी इस डोर को तोड़ देगा और मित्रता-रूपी यह गुब्बारा आकाश में उड़कर विलीन हो जाएगा। बहुत सुंदर पंक्तियां लिखी हैं और बेहतरीन बिम्ब तुलना हेतु प्रयोग किया है आदरणीय । हार्दिक बधाई।
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My gratitude for your appreciation, Padmaja Ji.
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A simple poem with a great message and depth, and superb imagery.
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Thank you so much, Kulbirji, for liking the poem.
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Thanks a lot, Rupradhaji, I'm glad you liked it.
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Jaipal Sahib,
Great advice, and welcome back.
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what a comparison..just wow..
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